40 फीसदी महिला उम्मीदवारों को टिकट, बारहवीं में पढ़ने वाली हर लड़की को स्मार्टफोन , अंडरग्रेजुएट प्रोग्राम में दाखिला लेने वाली लड़कियों को स्कूटी, महिलाओं को हर साल तीन मुफ्त गैस सिलेंडर, सरकारी बसों में मुफ्त यात्रा, ये वो कुछ महत्वपूर्ण और बड़े वादे हैं जो उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव से पहले कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी वाड्रा ने महिलाओं के लिए अलग से जारी किए गए 'शक्ति विधान' घोषणापत्र के जरिए किए, हैं.
प्रियंका गांधी के नेतृत्व में विधानसभा चुनाव लड़ रही कांग्रेस पार्टी चुनावों से पहले आधी आबादी यानि महिलाओं को साधने की कोशिश कर रही है. ऐसे में सबसे अहम सवाल उठता है कि आखिर कांग्रेस को इससे हासिल क्या होने वाला है, वो भी तब जब कोई भी राजनीतिक विश्लेषक या किसी भी ओपिनियन पोल में कांग्रेस की स्थिति अच्छी नहीं है.
सवाल यह भी है कि क्या कांग्रेस राज्य में वोट कटवा पार्टी की तरह काम कर रही है और वो बीजेपी के लिए मुश्किल और समाजवादी पार्टी के लिए रास्ता आसान करने की कोशिश कर रही है या फिर वो चाहे-अनचाहे बीजेपी की ही मदद कर रही है.
महिलाएं निर्णायक भूमिका में
राज्य में महिला वोटरों की स्थिति
- 2007 में राज्य में 6 करोड़ 15 लाख से अधिक पुरुष वोटर और 5 करोड़ 19 लाख से अधिक महिला वोटर थीं. इस दौरान 5716 पुरुषों ने अपना भाग्य आजमाया था, जबकि 370 महिला उम्मीदवार मैदान में थीं. हालांकि, 380 पुरुष जीतकर विधानसभा पहुंचे थे, जबिक 23 महिलाएं ही विधानसभा तक पहुंची पाई थीं.
- साल 2012 में 6252 पुरुषों और 583 महिला उम्मीदवार मैदान में थे, जबकि 368 पुरुष और 35 महिला जीतकर विधानसभा पहुंचे थे. इस दौरान 4 करोड़ 12 लाख से अधिक पुरषों ने अपने वोट के अधिकार का इस्तेमाल किया था जबकि 3 करोड़ 45 लाख महिला वोटरों ने अपने मताधिकार का इस्तेमाल किया.
- साल 2017 में 4 करोड़ 55 लाख से अधिक पुरुष वोटरों ने अपने मताधिकार का प्रयोग किया था, जबकि 4 करोड़ 90 लाख से अधिक महिला वोटरों ने अपने वोट के अधिकार का इस्तेमाल किया था. इस दौरान 4370 पुरुष मैदान में उतरे थे और 482 महिला उम्मीदवारों ने अपनी किस्मत आजमाई थी. इसमें 356 सीटों में पुरुष उम्मीदवारों ने जीत दर्ज की थी और 42 सीटों पर महिल उम्मीदवार ने जीत दर्ज की.
- बात अगर 2019 के लोकसभा चुनावों की करें तो उत्तर प्रदेश में 7 करोड़ 90 लाख से अधिक पुरुष मतदाताओं ने वोट किया था जबकि 6 करोड़ 70 लाख से अधिक महिला मतदाताओं ने अपने वोट का इस्तेमाल किया था.
(आंकड़े ECI के अनुसार)
इन आंकड़ों से एक बात तो साफ है भले ही महिला वोटरों की संख्या चुनाव-दर-चुनाव बढ़ी हो और महिलाओं द्वारा अपने मताधिकार का इस्तेमाल करने के प्रतिशत में भी बढ़ोतरी हुई हो, लेकिन विधानसभा में उस अनुपात में उनकी हिस्से नहीं बढ़ी है. वहीं पार्टियों द्वारा महिलाओं को टिकट नहीं देने की मानसिकता जस की तस है. लेकिन महिलाएं किसी की जीत और हार में सबसे महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती हैं.
बिहार विधानसभा चुनावों में एनडीए की जीत और पश्चिम बंगाल में इस साल चुनाव में टीएमसी की जीत में महिला वोटर काफी अहम रही हैं. बिहार में नीतीश कुमार ने शराबबंदी का फैसला महिलाओं को साधने के लिए लिया था, इसके अलावा सरकार ने कई और ऐसे फैसले लिए हैं, जिसे पार्टी द्वारा महिलोंओं को अपनी ओर खीचनें की कोशिश के तौर पर देखा गया.
साल 2014 में और साल 2019 के लोकसभा चुनावों में भी बीजेपी की जीत में महिलाओं की अहम भूमिका रही और केंद्र सरकार ने उज्जवला जैसी योजनाओं के साथ उन्हें अपने साथ बनाए रखने की कोशिश की. इसके अलावा इसी साल मोदी सरकार के कैबिनेट विस्तार में महिलाओं की तवज्जो मिली है, लेकिन वो उस अनुपात में नहीं है जितनी होनी चाहिए थी.
राज्य में कांग्रेस की स्थिति
कांग्रेस की स्थिति राज्य में काफी खराब है. साल को 2007 में पार्टी को 8.61% फीसदी वोट मिले थे, जबिक 2012 के चुनाव में कांग्रेस को 28 सीटों पर जीत मिली थी, और इस दौरान पार्टी को 11.65% फीसदी वोट मिले थे. 2017 के विधानसभा चुनावों में पार्टी को 6.3 प्रतिशत वोट मिले थे. 2017 में पार्टी सिर्फ 7 सीटों पर ही जीत पाई.
प्रियंका चाहती क्या हैं
दरअसल, महिला वोटर बीजेपी के लिए काफी अहम है. राज्य के कुछ सीनियर पत्रकारों की मानें तो कांग्रेस महिला वोटरों के सहारे बीजेपी को राज्य में सत्ता से हटाना चाहती है. कांग्रेस की कोशिश है कि वो बीजोपी के वोट में सेंधमारी करें. इसके अलावा कांग्रेस महिलाओं को अपने पाले में लाकर राज्य में अपनी स्थिति को मजबूत करना चाहती है. साथ ही पार्टी महिलाओं के सहारे राज्य में अपने संगठन को एक बार फिर खड़ा करने की कोशिश में है.
इसके अलावा प्रियंका अपने काम में सफल होती हैं तो बीजेपी विरोधी वोट के एकलौते दावेदार समाजवादी पार्टी को इसका फायदा होगा. प्रियंका ने समाजवादी पार्टी और उसके अध्यक्ष अखिलेश यादव को लेकर एक तरह से चुप्पी साध रखी है. अगर कांग्रेस अपनी कोशिशों में कामयाब होती है तो उसका नुकसान बीजेपी को होगा, लेकिन इसका कांग्रेस से कहीं अधिक फायदा समाजवादी पार्टी को होगा.
प्रियंका सफल हुई तों क्या
आखिर महिलाओं को अपने पाले में लाकर क्या कांग्रेस इस स्थिति में पहुंच जाएगी कि वो बीते तीन विधानसभा चुनावों के मुकाबले आगामी विधानसभा में सबसे बढ़िया प्रदर्शन करेगी. राजनीति की थोड़ी भी जानकारी रखने वाला साफ तौर पर कह सकता है कि नहीं क्योंकि कांग्रेस राज्य में ऐसी स्थिति में नहीं है. किसी के मन में इसको लेकर दोराय नहीं है कि राज्य में कांग्रेस का संगठन इतना मजबूत नहीं है कि पार्टी अपने दम पर सरकार बना लें.
सवाल होता है प्रियंका की सारी कवायद सिर्फ वोट प्रतिशत बढ़ाने की है. अगर कांग्रेस महिलाओं का वोट पाकर अपना वोट प्रतिशत बढ़ा भी लेती है तो क्या यह सीटों में कन्वर्ट हो पाएगा और अगर वो कन्वर्ट हुआ तो कांग्रेस कितनी सीट जीत पाएगी,यह सबसे बड़ा सवाल है.
दरअसल, राज्यसभा इसका दूसरा पहलू हो सकता है जिसके सांसदों के चुनाव के लिए विधायकों की जरुरत पड़ती है. अगर कांग्रेस के 30 से अधिक विधायक होते है तो वो सपा के साथ गठजोड़ कर अपने एक नेता का नाम प्रस्तावित कर सकती है.
अगर हुईं असफल तो चुकानी पड़ेगी भारी कीमत
उत्तर प्रदेश के चुनाव को कवर कर रहे पत्रकारों की मानें तो राज्य में बीजेपी और सपा में सीधी टक्कर है. राज्य की पूरी राजनीति इन्हीं दो पार्टियों के इर्द-गिर्द घूम रही है. बीते कुछ विधानसभा चुनावों में एक बात साफ तौर पर उभर कर आई है कि जहां-जहां बीजेपी विरोधी वोट बंटा है, वहां बीजेपी को फायदा हुआ है, वहीं जहां-जहां बीजेपी के सामने सिर्फ एक पार्टी या चेहरा रहा है, वहां बीजेपी को नुकसान हुआ है.
प्रियंका की इन कोशिशों के चलते अनचाहे में ही अगर बीजेपी विरोधी वोट बंटा और बीजेपी को इसका फायदा पहुंचा तो क्या होगा. जवाब हो सकता है कि समाजवादी पार्टी को इसकी कीमत चुकानी पड़े जाए क्योंकि वो बीजेपी को सीधी टक्कर देते हुए दिखाई दे रही है और ऐसे स्थिति में प्रियंका गांधी और कांग्रेस, अखिलेश और समाजवादी पार्टी के निशाने पर आ जाएगी. ऐसे में संभावना इस बात की भी है कि ममता बनर्जी कांग्रेस मुक्त विपक्षी पार्टियों का जो मोर्चा बना रही हैं उसमें सपा के तौर पर एक और नाम जुड़ जाए. हालांकि, यह तो नतीजे ही बताएंगे कि क्या कांग्रेस अपनी कोशिश में कामयाब होती है या फिर उसे अभी और इंतजार करना पड़ेगा, क्योंकि अभी तो चुनावों की तारीखों का ऐलान भी नहीं है और इस दौरान गंगा से काफी पानी बहेने वाला है.
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