बीते दिनों पांच राज्यों के विधानसभा चुनावों के परिणाम आए हैं. बीजेपी चार राज्यों में बहुमत हासिल करने में सफल हो पाई, जबकि आम आदमी पार्टी ने पंजाब में अप्रत्याशित रूप से बड़ी जीत दर्ज की. पंजाब में आम आदमी पार्टी की जीत के बाद, एक बात पार्टी के नेताओं द्वारा अलग-अलग मंचों के कही गई कि आम आदमी पार्टी, नरेंद्र मोदी और बीजेपी का विकल्प है. इसके बाद कई विश्लेषकों ने इस पर लेख लिखे.
मोदी और अरविंद केजरीवाल की तुलना करते समय इस पर ध्यान मत दीजिए कि कौन कट्टर हिंदू है, कौन कितना बड़ा गांधी विरोधी है. दोनों की तुलना इस पर कीजिए कि कौन कितने दमदार तरीके से जनता तक सरकारी योजनाओं को भ्रष्टाचार मुक्त रूप से सीधे पहुंचा रहा है. इसके अलावा कौन बेहतर तरीके से मीडिया को मैनेज कर पा रहा है. क्योंकि मौजूदा दौर की राजनीति इसी के इर्द गिर्द घूम रही है.
जनता तक भ्रष्टाचार मुक्त योजना पहुंचाना
नरेंद्र मोदी ने साल 2012 से ही साल 2014 के लोकसभा चुनावों के लिए रैलियां करनी शुरू कर दी थी. देश भर में अलग-अलग मंचों से उन्होंने अपने गुजरात में किए गए विकास को एक मॉडल की तरह पेश किया और जन मानस के मन में यह छवी गढ़ी की वो देश को एक नई राह दिखा सकते हैं.
पीएम मोदी जब 2014 में जीत के आए तो उन्होंने जन धन अकाउंट और आधार के जरिए सीधा जरूरतमंद के खाते में पैसे भेजने की व्यवस्था पर जोर दिया. इससे जनता के लिए दिल्ली से चलने वाला रुपया सीधा उस तक पहुंचा, वो भी उसके खाते में. इसके अलावा अनेकों योजनाओं और मौजूदा दौर में अन्न योजना, जिसमें जनता को फ्री में राशन मिलता है, वो भी करीब डेढ़ साल से अधिक समय से, जिसमें ना के बराबर भ्रष्टाचार हुआ.
आम आदमी पार्टी और अरविंद केजरवील तो भ्रष्टाचार के खिलाफ हुए अन्ना आंदोलन से ही आए हैं. दिल्ली में पार्टी ने अपने पहले कार्यकाल में भ्रष्टाचार के खिलाफ जीरो टॉलरेंस की नीती अपनाई और अधिकारियों के मन में डर बैठाया और जनता को उसका लाभ मिला. इसके बाद जनता तक सीधे योजनाओं की पहुंच, वो भी घर बैठे, शिक्षा के क्षेत्र में बेहतर काम, अस्पतालों में बेहतर सुविधा, मोहल्ला क्लिनिक जैसी योजनाओं से जनता को लाभ पहुंचाने का काम किया.
यहां एक बात याद रखीए, जनता तक योजना पहुंची, वो महत्वपूर्ण है, जनता को जब योजना का लाभ मिला को वो शत प्रतिशत मिला, यह महत्वपूर्ण है, उस योजना में कितना भ्रष्टाचार हुआ यह नहीं. क्योंकि यह दो अलग-अलग चीजें हैं.
मीडिया पर लगाम
नरेंद्र मोदी के आलोचक बार-बार यह कहते हैं कि मोदी ने मीडिया को मैनेज करके अपनी एक छवी बनाई है, जिससे ऐसा दिखाया जाए कि उनके पास हर सवाल का जवाब मौजूद है और स्क्रीन टाइम पर कब्जा करने के चलते, जनता को मोदी के आगे कोई दिखाई ही ना दे. जो पत्रकार या मीडिया हाउस विचारधारा के आधार पर सरकार और मोदी के खिलाफ थे, उन्होंने बड़ी चतुराई से मीडिया के एक वर्ग ने गोदी मीडिया घोषित किया था. दोनों तरफ के खेमे बंटे हुए हैं, आज किसी को इस बात में कोई शंका नहीं है कि कौन सा चैनल या पत्रकार मोदी सरकार के साथ है और कौन उनके खिलाफ.
मीडिया को मैनेज करने के लिए सरकार ने संपादकों के हाथों से मीडिया घरानों की चाबी लेकर चैनल मालिकों को दे दी और ऐड के माध्यम से इसे संभव बनाया गया. जो सरकार की कम आलोचन करें और उनके साथ खड़ा दिखें, सरकार के काम की समीक्षा करते समय भी सरकार की तारीफ की जाए, ऐसी व्यवस्था बनाने वाले चैनलों को अधिक मात्रा में ऐड दिया गया. लेकिन अगर किसी चैनल ने सवाल उठाए या मोदी को घेरने की कोशिश की उन्हें ऐड नहीं दिया गया.
अरविंद केजरीवाल के नेतृत्व में जब पार्टी को 2019 के लोकसभा चुनावों में दिल्ली में ही सभी लोकसभा सीटों पर हार का सामना करना पड़ा तब उन्होंने मोदी को गरियाने की बजाए, अधिक आक्रमक तरीके से मीडिया को मैनेज करने पर अपना ध्यान केंद्रीत किया. दिल्ली सरकार की तरफ से मीडिया को लगातार विज्ञापन दिए गए. यह विज्ञापन उन चैनलों को भी दिए गए जो दिल्ली से बाहर के हैं और उनको भी दिए गए जो केंद्र सरकार के काम की तीखी आलोचना करते हैं. देश के अधिकतर मीडिया हाउस दिल्ली में हैं और देश भर में उनकी पहुंच है, हिन्दी पट्टी में उनका एक खासा जनाधार है, ऐसे में इस बात को ध्यान में रखकर राष्ट्रीय मीडिया को खूब ऐड दिए गए.
इन ऐड का असर हुआ कि मीडिया ने आम आदमी पार्टी की आलोचना करनी बंद कर दी. कई पत्रकार व्यक्तिगत तौर पर शिक्षा के मसले पर आम आदमी पार्टी सरकार की तारफी करने लगे, बिना जाने की उन दावों की सच्चाई क्या है, जो सरकार कर रही है. अरविंद केजरीवाल को स्क्रीन पर तारीफ भले ना मिली, लेकिन आलोचन भी नहीं मिली.
उदाहरण के लिए फैक्ट चेक करने वाली कई बेवसाइट पीएम मोदी के भाषणों के बाद उनके दावों की सच्चाई का पता लगाते हुए लेख प्रकाशित करती हैं. लेकिन अरविंद केजरीवाल के साथ ऐसा नहीं होता. बीते दिनों दिल्ली विधानसभा में अरविंद केजरीवाल ने कहा कि उन्होंने दिल्ली के 20 लाख लोगों को रोजगार दिया. अगले ही दिन मनीष सिसोदिया ने दिल्ली विधानसभा में जो आंकड़ा दिया, वो अरविंद केजरीवाल के दावों से एकदम अलग था. अरविंद केजरीवाल ने इससे पहले पंजाब में अलग-अलग स्थानों पर भाषण देते हुए पुलों के निर्माण में सरकार द्वार बचाए गए पैसों को लेकर अलग-अलग दावें दिए. लेकिन कहीं पर भी इनके दावों की सच्चाई पता लगाते हुए लेख नहीं लिखे गए. ऐसे में उन्हें झूठ बोलने को लेकर फ्रीहैंड मिल गया और वो अलग-अलग दावें पेश करते गए.
ब्लूटिक धारी योद्धा
बीजेपी और आम आदमी पार्टी के कार्यकर्ताओं के पास सोशल मीडिया योद्धा है, जो अपने नेताओं के लिए दिन रात काम करते हैं. बीजेपी के योद्धा ना सिर्फ ट्विटर पर बड़ी आक्रमता के साथ अपने नेताओं का बचाव करते हैं बल्कि उन पर उंगली उठाने वालों के खिलाफ भी खड़े हो जाते हैं. लेकिन आम आदमी पार्टी के साथ स्थिति थोड़ी अलग है.
आम आदमी पार्टी के पास भी ट्रोल आर्मी है, जो उसके लिए लोगों को ट्रोल करती है, और पार्टी के नेताओं का बचाव भी. लेकिन जब काम की तारीफ करने की बात आती है तो उसके लिए ऐसे कई लोग, जो मोदी से देश को खतरा बताते हैं, बड़ी ही चतुराई से अरविंद केजरीवाल का प्रमोशन करते हुए दिखाई देते हैं. लेकिन, यही लोग बीजेपी के अच्छे काम की तारीफ कभी नहीं करते. ऐसे तमाम लोग जो सरकार के खिलाफ हैं, और कांग्रेस से निराश है, वो अरविंद केजरीवाल की तरफ आशा भरी निगाहों से देखते हैं.
क्या मोदी को चुनौती दे पाएंगे अरविंद केजरीवाल
कांग्रेस या कोई भी अन्य विपक्षी दल दिल्ली की मीडिया को उस तौर पर मैनेज नहीं कर पा रही है, जैसा मोदी और अरविंद केजरीवाल कर रहे हैं. साथ ही केजरीवाल एक चतुर व्यक्ति हैं जो कोर्स करेक्शन करने में देरी नहीं लगाते. दिल्ली विधानसभा में बीते दिनों अरविंद केजरीवाल द्वार कही गई बात पर ध्यान दीजिएगा. विपक्ष के पास कश्मीर फाइल्स का कोई जवाब नहीं था, लेकिन अरविंद केजरीवाल द्वारा कहना कि फिल्म को यू-ट्यूब पर अपलोड कर दो फ्री ही फ्री है सब देख लेंगे, एक मुश्किल से दिखाई पड़ते सवाल का काफी आसान जवाब था.
इसके अलावा अरविंद केजरीवाल और उनकी पार्टी के नेताओं द्वारा विधानसभा में हंसने के मुद्दो को बीजेपी ने कश्मीरी पंडितों और हिंदुओं पर हुए अत्याचारों के खिलाफ हंसी बताया तो, अरविंद केजरीवाल ने अधिक नुकसान होने से पहले ही एक मीडिया हाउस को इंटरव्यू दिया, जहां उन्होंने अपनी बात रखी और सावालों का जवाब देकर उल्टा बीजेपी को कठघरे में खड़ा किया.
इसे यहीं छोड़िए, एक बात पर गौर कीजिए, अरविंद केजरीवाल ने मीडिया को ऐड देने में किसी तरह का कोई वैचारिक मतभेद नहीं दिखाया. उन्होंने सभी को ऐड दिया. लेकिन नरेंद्र मोदी और बीजेपी के साथ स्थिति अलग है.
पंजाब के रूप में आम आदमी के पास पहली बार पुलिस आई है और एक पूर्ण राज्य, जहां सरकार जो चाहे कर सकती है, ऐसे में कहना गलत नहीं होगा कि अब अरविंद केजरीवाल को निशाना बनाने वाले व्यक्ति को पंजाब पुलिस का सामना करना पड़ेगा और मीडिया के पास और अधिक ऐड आएगा.
एक बात याद रखिए, भारत में एक बात काफी कही जाती है- जो दिखता है वो बिकता है, भले ही मौजूदा समय में आम आदमी के पास देश के कई राज्यों में अपना जनाधार ना हो, पार्टी के लिए कार्यकर्ता ना हो, पार्टी संगठन ना हो, लेकिन उसके पास मीडिया है, जो उसके लिए यह सब इंतजाम करने में मदद जरूर करेगा.
अरविंद केजरीवाल के दावों की सच्चाई बताने वाला कोई नहीं है, कितने लोगों को रोजगार दिया, अस्पतालों में क्या सच में दवाई फ्री है, क्या सच में दिल्ली के अस्पतालों की स्थिति बेहतर हुई है, क्या सच में दिल्ली के स्कूलों और शिक्षा व्यवस्था को लेकर कोई समस्या नहीं है, क्या सच में दिल्ली के स्कूलों का कायाकल्प हुआ है, ऐसी रिपोर्ट आप कभी नहीं देख पाएंगे, जो सवाल उठाएगा उसका मुंह ऐड से बंद किया जाएगा, और ऐड देने वाले व्यक्ति के साथ विचारधारा की कोई समस्या नहीं है, इसीलिए जिसका मुंह बंद होगा, वो कुछ बोलेगा ही नहीं.
आम आदमी पार्टी इस साल के अंत में गुजरात और हिमाचल में होने वाले चुनावों को जिस कुशलता से लड़ेगी, उससे उसके भविष्य का निर्धारण होगा. अगर पार्टी हिमाचल और गुजरात में ठीक स्थिति में पहुंचती है, तो वह साल 2024 तक आते-आते ऐसी स्थिति में पहुंचने की कोशिश करेगी कि देश के हर राज्य में उसके क्षत्रप मौजूद हों और मीडिया इसमें बड़ी भूमिका निभाएगा. इसमें कोई दो राय नहीं कि मीडिया को ऐड के माध्यन से मैनेज करने में अरविंद केजरीवाल ने पीएम मोदी को पीछे छोड़ दिया है. हालांकि, बात जब वैचारिकता की आएगी, तो लोग बीजेपी के साथ जुड़ेगे ना कि अरविंद केजरीवाल के साथ, इसको लेकर भी लोगों में भ्रम नहीं होना चाहिए.
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