भारत में बात जब भी बेरोजगारी की होती है तो सबसे पहले सभी की जुबां पर जो लाइन आती है वो है, सरकार भर्ती नहीं निकाल रही. सरकारी नौकरी भारतीय युवाओं का सपना होती है, यह कहें तो गलत नहीं होगा. बिहार जैसे राज्य की एक पहचान यह भी है कि वो देश को हर साल सबसे अधिक आईएएस और आईपीएस देता है. देश में सरकारी नौकरियों की भरमार नहीं है.
मोदी सरकार के आने के बाद इस बात को लेकर उदासीनता और देखी गई है कि सरकार खाली पद भर नहीं रही है और नई भर्ती निकाल नहीं रही है. इसको लेकर सरकार का काफी विरोध भी होता है. मोदी सरकार की एक बात को लेकर और आलोचना होती है कि वो सब कुछ प्राइवेट हाथों में दे रही है. बीते दिनों ही खबर आई थी कि देश में पहली बार कोई प्राइवेट कंपनी रेल सेवा दे रही है.
मौजूदा समय में सरकार की अग्निपथ योजना को लेकर विरोध हो रहा है. युवा भर्तियों की आस लगाए थे, उनको लग रहा है कि सरकार उनके सपनों के साथ खेल रही है. अग्निपथ योजना, सही है या गलत, उससे क्या नुकसान और क्या फायदा है, क्या यह सरकारी नौकरी की आस लगाए युवाओं को धोखा देना है, इसके इतर एक सवाल और महत्वपूर्ण है, वो है कि भारत में लोग सरकारी नौकरियों की तरफ ही क्यों भागते हैं और अपना बिजनेस शुरू करने की तरफ ध्यान क्यों नहीं देते. क्या यह माइंडसेट का सवाल अधिक है, बजाए इसके कि भारत में अपना बिजनेस शुरू करने के लिए वो माहौल नहीं है, और सरकारी नौकरी के साथ सुरक्षा की गांरटी आती हैं, जो स्थिति बिजनेस के साथ नहीं है.
स्टार्टअप का देश अमेरिका
अमेरिका विश्व की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था वाला देश है. अमेरिका की एक पहचान यह भी है कि वो माइग्रेंट कंट्री है, यानि विश्व के अलग-अलग कोने से लोग वहां बेहतर जिंदगी की तलाश में पहुंचते हैं. यही माइग्रेंट अमेरिका को विश्व की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनाने में सबसे अहम योगदान देते हैं. अमेरिका पहुंचने वाले अधिकतर लोग, वहां पर खुद का स्टार्टअप खोलने पर जोर देते हैं, बजाए अच्छी नौकरी की तलाश करने में. अमेरिका में जो इंटरनेशनल स्टूडेंटड जाते हैं, उसमें से 23 फीसदी अपना स्टार्टअप खोलते हैं.
नेशनल फाउंडेशन फॉर अमेरिकन पॉलिसी के एक नए अध्ययन से पता चलता है कि अमेरिका की $ 1 बिलियन डॉलर से अधिक बाजार मूल्य की स्टार्टअप कंपनियों में से 55 फीसदी कंपनियों को शुरू करने वाला कोई माइग्रेंट था. इसको लेकर एक आंकड़ा और दिलचस्प है.
अमेरिका में जो स्टार्टअप या नई कंपनियां खुलती हैं, कोई ना कोई माइग्रेंट उससे जुड़ा है और कंपनी के विकास में किसी ना किसी तरह से उसने योगदान दिया है, उसकी संख्या 82 फीसदी से अधिक हैं. ये कंपनियां बहुत से लोगों को रोजगार भी देती हैं. एक स्टार्टअप द्वारा कम से कम 1200 लोगों को प्रत्यक्ष तौर पर नौकरी दी जाती है, अमेरिका में, जो उसके लिए बहुत बड़ा आंकड़ा है. इन आंकड़ों से साफ पता चलता है कि विश्व के कोने कोने से अमेरिका पहुंचने वाले लोगों में अधिकतर वहां पर जाकर अपना बिजनेस करते हैं.
स्टार्टअप के मामले में भारत की स्थिति
अमेरिका स्टार्टअप का देश है. 21वीं सदी में अमेरिका से यूरोप ने यह तमगा छीनने की कोशिश की है, लेकिन वो इसमें अभी तक उतना सफल नहीं हो पाया है. दूसरी तरफ भारत की स्थिति स्टार्टअप के मामले में काफी खराब है. मोदी सरकार के आने के बाद स्टार्टअप की संख्या में बढ़ोतरी हुई है, क्योंकि सरकार खुद लोगों को स्टार्टअप के लिए प्रोत्साहित कर रही है. विश्व में मौजूदा समय में जो सबसे सफल स्टार्टअप हैं, उसमें शुरूआती 150 में से भारत की सिर्फ 19 कंपनियां हैं. इस लिस्ट में जो टॉप पर देश हैं वो अमेरिका है और दूसरे नंबर पर यूरोप के देश हैं.
सवाल मानकिसता का है
भारत में सरकारी नौकरी, एक नौकरी के अधिक प्रतिष्ठा का सवाल है. भले ही व्यक्ति सबसे निम्म ग्रेड में काम करता हो, लेकिन सरकारी नौकर है, तो उसको किसी छोटे और मंझले व्यापारी की तुलना में अधिक सम्मान की नजर से देखा जाता है. यह मानसिकता का सवाल है.
दिल्ली सरकार द्वारा स्टार्टअप कल्चर को बढ़ावा देने के लिए स्कूली शिक्षा में एंटरप्रेन्योर का कार्यक्रम लाया गया है. शुरूआत में जो रूझान आए हैं, वो हैरान करने वाले हैं, क्योंकि कई बच्चों ने सफलता से अपना बिजनेस चलाकर दिखाया है. इस बात की संभावना अधिक है कि यह बच्चे आगे चलकर अपना स्टार्ट अप शुरू करें, या फिर अपने उसी स्टार्टअप को बड़ा बनाने पर ध्यान दें, बजाए इसके कि वह सरकारी नौकरी की तरफ देखें.
स्टार्टअप की सफलता पर सवाल
स्टार्टअप के साथ समस्या यह रहती है कि वो चलेगा या नहीं. यूरोप और अमेरिका के कई जानकार मानते हैं कि स्टार्टअप फेल होंगे, इसकी संभावना 60 फीसदी होती है, यानि 100 में से 40 स्टार्टअप ही सफल हो पाते हैं. हालांकि, यह स्थिति भी खराब नही हैं, क्योंकि इन 40 कंपनियों में काम करने के लिए लोग तो चाहिए ही होंगे. मौजूदा समय में विश्व भर में जो नौकरियां पैदा हो रही हैं, उसमें स्टार्टअप का हिस्सा 1/5वां है.
अमेरिका के स्टार्टअप की सबसे अहम बात यह भी है कि वहां कंपनियों की शुरूआत में जुड़े कर्मचारियों को कंपनी के शेयर का एक हिस्सा दिया जाता है. यूरोप के देशों में शेयर देने का आंकड़ा अमेरिका की तुलना में कम है, लेकिन वहां पर भी स्टार्टअप में शुरूआत में जुड़े कर्मचारियों को कुछ शेयर दिए जाते ही हैं. यूरोप में नए स्टार्टअप में कंपनियों के सीईओ और सीओओ जैसे पदों पर बैठे व्यक्तियों के लिए शेयरों में हिस्सेदारी अधिक है, लेकिन इसमें अब बदलाव देखने को मिल रहा है.
स्टार्टअप को लेकर दूसरा सवाल फंड का है. हमारे यहां कोई बड़ी कंपनी, हमारे देश के स्टार्टअप में पैसा निवेश करने से कतराती हैं, जबकि यूरोप और अमेरिका में यह स्थिति नहीं है. अमेरिका में सभी बड़ी कंपनियां नए स्टार्टअप में निवेश करती हैं. इतना ही नहीं, किसी अच्छे स्टार्टअप जिसकी बढ़ने की संभवाना अधिक हो, उसमें निवेश करने में अमेरिकी कंपनियों में प्रतिस्पर्धा रहती है. भारत में इसको लेकर उदासीनता है.
कहीं पिछड़ ना जाएं हम
दूसरी तरफ अमेरिका है, जिसके राष्ट्रपति जो बाइडन ने बीते अप्रैल में विश्व कप के युवाओं को, जो स्टार्टअप माइंडसेट के हैं, उन्हें अपने देश में आने और वहां पर स्टार्टअप खोलने के लिए वीजा के नियमों में ढील देने की घोषणा की है, और उनके इस कदम की तारीफ हो रही है. माना जा रहा है कि इससे आने वाले दिनों में अमेरिका में कई नई नौकरियों पैदा होंगी.
ऐसे में भारतीय युवाओं को भी स्टार्टअप यानि अपना बिजनेस खोलने के लिए प्रोत्साहित करने की जरूरत नहीं है, यह बड़ा सवाल है. लेकिन, इसके लिए जरूरी है कि युवाओं को रूझान स्टार्टअप की तरफ बढ़े. हालांकि, यह एक दिन में नहीं होगा, लेकिन अगर कोशिश की जाए तो एक ना एक दिन तो होगा ही, लेकिन उस तरफ कदम तेजी से बढ़ाने होंगे, क्योंकि हम इसमें पहले ही पिछड़ चुके हैं.
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