नरेंद्र मोदी की अगुवाई में बीते 8 सालों में राज्य दर राज्य भाजपा का जो विजयरथ दौड़ा है, उसका एक चक्का उन लोक कल्याणकारी योजनाओं का है, जिससे अंतिम पायदान पर खड़े व्यक्ति को योजनाओं का सीधा लाभ मिला है तो दूसरा पहिया उस धार्मिक ध्रुविकरण का है जिसके सहारे बीजेपी सभी सवालों से बचते हुए राज्य दर राज्य चुनाव दर चुनाव या तो जीतती चली आ रही है या फिर वो बेहतर प्रदर्शन कर रही है.
लेकिन बीते दिनों नुपूर शर्मा और नवीन जिंदल के मामले को लेकर जिस तरह से मोदी सरकार अबर देशों के सामने झुकी और उसके बाद पार्टी द्वारा अपने प्रवक्ताओं को नसीहत देने की खबरें, जो सूत्रों से हवालें से आईं, उससे सवाल उठता है कि क्या पार्टी अपने आक्रमक हिंदुत्व के रास्ते से हट रही है और क्या पार्टी खुद मान रही है कि इससे देश का भला नहीं होने वाला.
यह सवाल इसलिए भी क्योंकि एक तरफ विदेश मंत्री हैं, जो अमेरिका और यूरोप के सामने खुलकर बैटिंग कर रहे हैं तो दूसरी तरफ नरेंद्र मोदी की अगुवाई वाली सरकार, नुपूर शर्मा और नवीन जिंदल के बयानों के बाद जिस तरह से अरब देशों के सामने झुकी है, उसे जुड़ा ऐसा कोई दूसरा उदाहरण सामने है नहीं, कि सरकार विदेश मामले में इस तरह से किभी झुकी हो. इसके अलावा मोहन भागवत का बीते दिनों दिया गया बयान कि सभी मस्जिदों में शिवलिंग क्यों ढूंढना, भी इस सवाल का जवाब तलाशने के लिए मजबूर करता जरूर है,
वाराणसी के रहने वाले एक जानकार से बीते दिनों बात हुई तो उन्होंने साफ तौर पर कहा कि जब से ज्ञानवापी का सर्वे हुआ है, उसके बाद से ही इलाके के हिन्दुओं में एक अजब सा उत्साह है, तो दूसरी तरफ कई मुस्लमान भी है जो मानते हैं यह मस्जिद मंदिर ट्रस्ट को दे देनी चाहिए. वहीं बीजेपी की राजनीति को कवर करने वाले एक जानकार से जब इस मामले को लेकर बात की तो उन्होंने साफ कहा कि अगर यह मामला सुलट जाता है (यानि हिन्दुओं के पक्ष में आता है) तो बीजेपी आने वाले कुछ सालों में काफी मजबूत स्थिति में रहने वाली है.
लेकिन फिर ऐसा क्या हुआ कि संघ प्रमुख मोहन भागवत ने अचानक से नरम रुख अपना लिया और साफ तौर पर कहा कि हर मस्जिद के अंदर शिवलिंग क्यों ढूंढना. मोहन भागवत के इस बयान की कई लोगों ने सरहाना की.
ऐसा लगा कि आने वाले दिनों में स्थिति थोड़ी बेहतर होगी. लेकिन फिर इसके बाद बीते शुक्रवार को देश भर में जुम्मे की नमाज के बाद हुई हिंसा और उसके बाद के पुलिस एक्शन ने एकाएक सारा ध्यान इन सवालों के हटा दिया और एक बार फिर बीजेपी मजबूत स्थिति में पहुंच गई. लेकिन सवाल जस का तस है, आखिर मोहन भागवत के बयान को किस संदर्भ में देखा जाए और मोदी सरकार द्वारा अरब देशों को दिए गए जवाब को किस दिशा में देखा जाए.
रविवार को इंडियन एक्सप्रेस में तलवीन सिंह ने अपने एक लेख में साफ किया कि मोदी सरकार ने कतर से कोई माफी मांगी नहीं है और उन्होंने साफ लहेजे में कहा कि आने वाले दिनों में धर्म आधारित यह राजनीति चलती ही रहेगी रूकने वाली नहीं है.
इससे यह समझना आसान है कि सरकार भले ही अरब देशों के दवाब में आई हो, लेकिन उसने बड़ी ही चालाकी से इन सब के अपना पलड़ा झाड़ लिया है और अरब देशों को बता दिया है कि सरकार सभी धर्मों का सम्मान करती है, किसी ने कुछ कहा है तो वो देश का विचार नहीं है.
ऐसे में सवाल है कि मोहन भागवत के बयान को किस दिशा में देखा जाए. तो उसका सीधा जवाब है कि मोहन भागवत के बयान को समझने के लिए यह जाने ले कि संघ और बीजेपी ने राम मंदिर आंदोलन तब किया था जब बीजेपी मजबूत नहीं थी, लोकसभा में उसके दो सांसद थे और देश में मंडल आयोग की गूंज थी, ऐसी स्थिति में बीजेपी और संघ ने आंदोलन को हवा दी और उस आंदोलन के सहारे की सरकार बनाने की स्थिति तक पहुंचने का रास्ता तय किया. लेकिन मौजूदा दौर में सरकार खुद बीजेपी की है, और संघ ऐसी स्थिति में आंदोलन करेगा तो किसके खिलाफ. उस सरकार के खिलाफ जिसका मुखिया कभी उसका सिपाही रहा था.
दरअसल, आरएसएस लगातार अपना विस्तार कर रहा है, फिर चाहे केरल में चर्च के लोग हो या फिर मुस्लमान, आरएसस सब जगह अपनी पैठ धीरे-धीरे बना रहा है और उत्तर प्रदेश से लेकर बंगाल तक में 2024 में आसानी से जीत के लिए जरूरी है कि मुस्लमान उसके साथ हो, वरना स्थिति बिगड़ सकती है और मुस्लमानों को साथ लेने के लिए मंचों से ऐसे भाषण तो देने की पड़ेगे.
लेकिन एक सवाल और उठता है कि क्या देश ऐसी स्थिति में पहुंच चुका है जहां से वापस आना इतना आसान भी नहीं, क्योंकि बीजेपी ने जब नुपूर शर्मा को निकाला तो बीजेपी का समर्थन करने वाले कई लोग बीजेपी के खिलाफ हो गए, इसके अलावा पार्टी के कई नेताओं के नाराज होने की खबरें भी आईं. वहीं उत्तर प्रदेश में शुक्रवार को जगह-जगह हुए विरोध प्रदर्शन के बाद जिस तरह से पुलिस की बर्बरता पर भी लोग ताली पीटते नजर आए, उससे तो ऐसा ही लगता है कि जहर का असर इतना है कि कोई दवा काम आने वाली नहीं है.
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