जब इस साल पश्चिम बंगाल के विधानसभा चुनाव हो रहे थे, उस दौरान पूरा देश कोरोना की दूसरी लहर का सामना करन रहा था. 5 मई को पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनावों के नतीजे आए और ममता बनर्जी की पार्टी (टीएमसी) अपने दम पर बहुमत का आंकड़ा पार कर गई. मई और जून देश के लिए काफी भारी रहे. लगभग हर राज्य से इस तरह की तस्वीरें आती रहीं कि कैसे लोग बिना ऑक्सीजन के मरते रहे. तस्वीरों के माध्यम से यह भी सामने आया कि दिल्ली से लेकर लखनऊ तक शमशान घाटों पर शवों के अंतिम संस्कार के लिए लंबी-लंबी कतारें रही. शायद यह भी कम बुरा नहीं था कि उत्तर प्रदेश से गंगा में तैरती लाशें और नदी किनारे कुत्तों द्वारा शवों को नोचने की तस्वीर भी सामने आई.
इन सबके बीच एकदम से एक दिन खबर आती है कि केंद्र सरकार कोरोना की दूसरी लहर के दौरान योगी सरकार द्वारा किए गए काम से खुश नहीं हैं. इसके बाद वो तमाम खबरें मीडिया में सुर्खियां बनाती रहीं कि कैसे योगी के जन्मदिन पर मोदी द्वारा उन्हें ट्विटर पर बधाई नहीं दी, लखनऊ आए संघ के एक वरिष्ठ पदााधिकारी योगी से मिलने के लिए दो दिनों तक इंतजार करते रहे, लेकिन उनसे योगी मिले नहीं, इसके बाद प्रधानमंत्री नरेद्र मोदी के 18 साल से भरोसेमंद रहे और रिटायर्ड आईएएस अफसर अरविंद कुमार शर्मा को योगी कैबिनेट में जगह नहीं मिली.
राजनीतिक विश्लेषकों ने लिखा कि योगी, मोदी-शाह की मजबूत जोड़ी के सामने भी, मजबूती से खड़े रहे. योगी ना सिर्फ खड़े रहे बल्कि उन्होंने वो मोदी और शाह की जोड़ी पर 20 साबित हुए. वहीं योगी के दिल्ली दौरे के बाद विश्लेषकों का मानना कि मोदी-अमित शाह की जोड़ी योगी के सामने झुक गई.
उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनावों से पहले एकदम से सब कुछ सही नजर आने लगा. पीएम मोदी के योगी के कंधे पर रखी तस्वीर आना, मोदी और योगी का कई कार्यक्रमों में एक-साथ दिखना, मोदी द्वारा योगी के लिए 'यूपी+योगी= उपयोगी' का नारा देना और पीएम द्वारा पूर्वांचल में लगातार दौरे करना और हर रैली में योगी सरकार के काम की तारीफ करना, इन सब बातों के कारण कई सवाल खड़े होते हैं. सबसे बड़ा सवाल तो यही है कि क्या योगी और मोदी के बीच सब कुछ सही हो चुका है. क्या पूरी बीजेपी उत्तर प्रदेश में एक होकर चुनाव लड़ रही है.
ध्यान भटकाने के लिए प्लांट की गई खबरें?
मई और जून के दौरान जब देश कोरोना की दूसरी लहर का सामना कर रहा था, उत्तर प्रदेश के हर कोने से अव्यवस्था की तस्वीर सामने आ रही थी. खबरें भी आई कि सरकार ने कोरोना से निपटने के बजाए, तस्वीरों से निपटना ज्यादा जरुरी समझा. 26 मई को पत्रिका ने एक खबर प्रकाशित की "कोरोना दूसरी लहर के बीच सीएम योगी ने 26 दिनों में 40 जिलों का किया दौरा, जानी जमीनी हकीकत". इसी दौरान एक वीडियो भी सोशल मीडिया पर खूब वायरल हुआ जिसमें स्थानीय पत्रकारों ने अधिकारियों के दावों और जमीनी हकीकत के बीच की सही तस्वीर सीएम योगी के सामने पेश करनी चाही, लेकिन योगी बिना सुने साफ कह गए कि सब कुछ सही है. योगी ने दौरे तो किए लेकिन जमीनी सच्चाई से मुहं मोड़ते हुए नजर आए और मीडिया में लगातार कोरोना की अव्यवस्था से जुड़ी खबरें आती रहीं.
ऐसे में सवाल होता है कि क्या जुलाई और अगस्त के दौरान योगी और मोदी के बीच तनाव की खबरें सिर्फ इसीलिए आई कि मीडिया और लोगों का ध्यान कोरोना की अव्यवस्था से हट सके. अगर इसका जवाब हां है तो बीजेपी अपनी इस रणनीति में कामयाब हुई, यह कहना गलत नहीं होगा.
योगी के सामने सब मजबूर या बात कुछ और है ?
लेकिन अगर इसका जवाब ना है कि तो फिर सवाल पैदा होता है कि आखिर कुछ महीनों में ऐसा क्या हो गया कि मोदी सब कुछ भुलाकर योगी की ना सिर्फ तारीफ कर रहे हैं बल्कि लगातार आगे रहकर चुनावी कमान संभाले हुए हैं. इसका जवाब हो सकता है कि बीजेपी चुनाव पूरी तैयारी से लड़ना चाहती हो और चुनावों से पहले इस तरह का कोई संदेश नहीं देना चाहती हो कि उसके अंदरखाने कुछ भी सही नहीं है.
योगी की अपनी एक छवी है, कट्टर हिंदुत्व वाली और उससे जुड़ा वोटबैंक सिर्फ योगी के नाम पर ही वोट करेगा, बीजेपी यह बात अच्छी तरह जानती हैं, ऐसे में बीजेपी चुनावों से पहले कोई खतरा नहीं मोल लेना चाहती हैं. बीजेपी की कोशिश है कि वो मोदी को आगे करके वोट हासिल करे और योगी, मोदी के बाद सबसे मजबूत नेता दिखाई दें और योगी की उस छवी का इस्तेमाल करके चुनावों के दौरान उसका फायदा उठाए. यह भी संभव हो कि बीजेपी का केंद्रीय नेतृत्व चुनाव परिणामों के आधार पर योगी पर कोई फैसला ले.
हमेशा चुनावी मोड में रहने वाली बीजेपी से चुनावों में किसी भी कारण के चलते चुनावों को गंभीरता से नहीं लेने का संदेश आना बेईमानी है. वो भी ऐसी सूरत में जहां, लगभग यह साफ हो चुका है कि इस बार यूपी का चुनाव वन-ऑन-वन हो रहा है. वैसे भी इस साल हो रहे उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनाव कई मायनों में महत्वपूर्ण है. बीजेपी कतई नहीं चाहेगी कि वो 2024 के लोकसभा चुनावों से पहले यूपी जैसे बड़े राज्य को गंवा दे. हालांकि, सवाल फिर भी उठता है कि क्या पीएम मोदी, यह सब कुछ आसानी से भूला देंगे या यह चुनावी मजबूरी है और पीएम, बीजेपी और संघ चाहकर भी योगी पर कोई फैसला नहीं ले सकते.
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